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भूगोल में नव-नियतिवाद [रुको और जाओ नियतिवाद] | भूगोल में नव-निश्चयवाद UPSC | Neo Determinism( Stop and Go Determinism)

 विषयसूची:

  • भूगोल में नव-नियतिवाद (रुको और जाओ नियतिवाद) की अवधारणा
  • नव-नियतिवाद पर ग्रिफ़िथ टेलर के विचार
  • प्रश्नोत्तर 
    • नव-नियतिवाद पर संक्षिप्त व्याख्यात्मक नोट्स लिखें: (यूपीएससी 2010, 10 अंक)
    • वर्तमान संदर्भ में "रुको और जाओ नियतिवाद" की प्रासंगिकता पर चर्चा करें। (यूपीएससी 2016, 15 अंक)
    • नव नियतिवाद की आलोचनाएँ क्या हैं?
    • नव नियतिवाद पर संक्षिप्त नोट्स लिखें।
  • नव नियतिवाद पर एमसीक्यू [MCQ]


भूगोल में नव-नियतिवाद [रुको और जाओ नियतिवाद]:

  • भूगोल में नव-नियतिवाद की अवधारणा भूगोल में तीन प्रमुख दृष्टिकोणों में से एक है (अन्य नियतिवाद और संभववाद हैं) जो मानव और पर्यावरण संबंधों की व्याख्या करता है।
  • जैसा कि,  ना तो पर्यावरण नियतिवाद और ना ही संभववाद ने मानव और पर्यावरण के संबंध को सही ढंग से समझाने में सक्षम रहा , इसी कारण से नव-नियतिवाद की अवधारणा भूगोल में उभरा। 
  • नव-नियतिवाद को "रुको और जाओ नियतिवाद" भी कहा जाता है क्योंकि इसका मानना ​​है कि यदि मानवीय गतिविधियों ( प्रदुषण ) से पर्यावरण को लम्बे समय के लिए नुकसान पहुँचता है तो ऐसे गतिविधियों को रोकना चाहिए अन्यथा मानव हर वो चीज कर सकता है जिसे पर्यावरण हमें करने देता है। 

एक ऑस्ट्रेलियाई भूगोलवेत्ता, ग्रिफ़िथ टेलर, नव-नियतिवाद  की अवधारणा को प्रतिपादित करने वाले पहले व्यक्ति थे।

नव नियतत्ववाद के संबंध में ग्रिफ़िथ टेलर के मत:

सारे मानव गतिविधियाँ ना तो पर्यावरण द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित है जैसा कि पर्यावरणीय नियतिवाद मानता है , और ना ही सारे मानव गतिविधियाँ  पर्यावरण के नियमो से पूरी तरह से मुक्त है जैसा कि संभावनावाद का विश्वास है।

यह नियतिवाद और संभावनावाद अवधारणा के बीच [मध्य मार्ग] की अवधारणा है।

मनुष्य विभिन्न नवाचारों और गतिविधियों के माध्यम से पर्यावरण को बदल सकता है या विषम वातावण में वे सारे काम कर सकता है जो वहा का वातावरण में प्रकितिक रूप से संभव नहीं है।  उदाहरण लिए :

  • आज मानव सिचाई और उर्वरक की सुभीधा उलब्ध करके मानव बंजर भूमि और ग्रीष्म काल में भी खेती कर रहा है। 
  • आजकल नवाचार के कारण , बिना मृदा के उपयोग से खेती संभव हो गया है। 

लेकिन मानव द्वारा पर्यावरण को परिवर्तन करने की एक सीमा होती है या मानव पर्यावरण के हर चीज से खिलाफ नहीं जा सकता। मनुष्य की गतिविधियां पर्यावरण के नियमो के मानते हुऐ होना चाहिए , नहीं तो पर्यावरण मनुष्य के गतिविधियों को रोकने और समायोजित करने के लिए मजबूर भी करता है। उदाहरण हैं:

  • जलवायु परिवर्तन: सस्ते तरीके से उच्च विकास प्राप्त करने के लिए मनुष्य की गलत गतिविधियों से पर्यावरण को हानि पहुंच रही हैं। लेकिन पर्यावरण को प्रदूषित करने की एक सीमा होती है। जलवायु परिवर्तन के माध्यम से प्रकृति मनुष्य को पर्यावरण के प्रति अपने कार्यों को सही करने के लिए विवश कर रही है।
  • पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में गलत कृषि पद्धति के कारण इन क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता कम हो गयी है। उत्पादकता का कम होना भी एक पर्यावरणीय सूचक है। 
  • भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण अब जकार्ता [ इंडोनेशिया के राजधानी ] समुद्र में डूब रहा है।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन और जल संरक्षण ना करने के कारण , दुनिया के कई शहरों में जल संकट पैदा करना, चेन्नई में जल संकट इसका ताजा उदाहरण है।
  • हाल ही में केरल बाढ़ पश्चिमी घाटों के अत्यधिक दोहन का परिणाम है।

पर्यावरण , यातायात के एक नियंत्रक की तरह काम करता है। यह हमें रोकता है और सूचित करता है जब हम गलत काम करते है। मनुष्य पर्यावरण नियमो को पालन करते हुए,  देश के विकास कार्यक्रम को गति दे सकता है, धीमा कर सकता है या रोक सकता है लेकिन वह पर्यावरण की योजना के खिलाफ नहीं जा सकता।

किसी भी देश विकास का मार्ग क्या होगा यह बहुत हद तक वहा के भौतिक वातावरण तय करती है।

लंबे समय के लिए , एक प्रकृति योजना सबसे अच्छी योजना होती है; और विकास कार्यक्रम में प्राकृतिक नियम का पालन करना सबसे अच्छा तरीका है।

प्रकृति पूर्ण तानाशाह नहीं है, प्रकृति तटस्थ है विवेकशील लोग प्रकृति योजना का पालन करते हैं और आगे बढ़ते हैं।


प्रश्न 

नव-नियतिवाद पर संक्षिप्त व्याख्यात्मक नोट्स लिखें: (यूपीएससी 2010, 10 अंक)

उत्तर 

नव-नियतिवाद एक दार्शनिक अवधारणा है जो पर्यावरणीय नियतिवाद की प्रतिक्रिया में उभरी है।

नव-नियतिवाद सुझाव देता है कि जबकि ब्रह्मांड में कई घटनाएं और परिणाम पूर्व कारणों या प्राकृतिक कानूनों द्वारा निर्धारित किए जा सकते हैं, फिर भी मानवीय कार्यों द्वारा इन परिणामों को प्रभावित करने की कई संभावनाएं हैं।


यहां नव-नियतिवाद पर कुछ संक्षिप्त व्याख्यात्मक नोट्स दिए गए हैं:


पूर्ण नियतिवाद की अस्वीकृति:

नव-नियतिवाद पूर्ण नियतिवाद के विचार को खारिज करता है, जो मानता है कि प्रत्येक घटना ब्रह्मांड की प्रारंभिक स्थितियों के आधार पर पूर्वनिर्धारित और पूर्वानुमानित है। इसके बजाय, यह कुछ घटनाओं में अनिश्चितता के अस्तित्व को स्वीकार करता है।


संशोधक के रूप में प्रौद्योगिकी:

नव-नियतिवादियों ने तर्क दिया कि जबकि जलवायु, स्थलाकृति और संसाधनों जैसे पर्यावरणीय कारकों ने समाज को आकार देने में भूमिका निभाई, प्रौद्योगिकी इन पर्यावरणीय बाधाओं को काफी हद तक संशोधित या दूर कर सकती है। इसे प्रारंभिक पर्यावरणीय नियतिवाद से विचलन के रूप में देखा गया।


आलोचना:

आलोचकों ने तर्क दिया कि नव-नियतिवाद पर्यावरणीय चुनौतियों के जवाब में मानव एजेंसी, नवाचार और अनुकूलन के लिए जिम्मेदार होने में विफल रहा

नव-नियतिवाद अभी भी मानव व्यवहार और सामाजिक विकास के प्राथमिक चालकों के रूप में जलवायु, स्थलाकृति और संसाधनों जैसे भौतिक पर्यावरणीय कारकों पर भारी जोर देता है। आलोचकों का तर्क है कि यह संकीर्ण फोकस भौगोलिक परिणामों को आकार देने में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों की जटिल परस्पर क्रिया को नजरअंदाज करता है।



संभावनावाद द्वारा प्रतिस्थापन:

नव-नियतिवाद को धीरे-धीरे संभावनावाद के सिद्धांत द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जो दावा करता है कि जहां पर्यावरण कुछ बाधाएं निर्धारित करता है, वहीं मनुष्यों में किसी दिए गए भौगोलिक संदर्भ में संभावनाओं की एक श्रृंखला बनाते हुए, अनुकूलन करने और विकल्प बनाने की क्षमता होती है।


आधुनिक भूगोल में, ध्यान अधिक समग्र और अंतःविषय दृष्टिकोण की ओर स्थानांतरित हो गया है जो न केवल भौतिक कारकों पर बल्कि भौगोलिक पैटर्न और प्रक्रियाओं को समझने में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक तत्वों के गतिशील परस्पर क्रिया पर भी विचार करता है।


प्रश्न 

वर्तमान संदर्भ में "रुको और जाओ नियतिवाद" की प्रासंगिकता पर चर्चा करें। (यूपीएससी 2016, 15 अंक)

उत्तर 

"रुको और जाओ नियतिवाद" 20वीं सदी के मध्य में भूगोलवेत्ता ग्रिफ़िथ टेलर द्वारा पेश की गई एक अवधारणा है।

यह एक सिद्धांत को संदर्भित करता है जो बताता है कि कुछ क्षेत्रों या क्षेत्रों में तेजी से आर्थिक विकास की अवधि ("जाओ" चरण) का अनुभव हो सकता है जिसके बाद स्थिरता या गिरावट ("रुको " चरण) हो सकती है; यह मुख्य रूप से तकनीकी परिवर्तन, आर्थिक चक्र या पर्यावरणीय खतरों (प्रदूषण, चक्रवात) जैसे कारकों के कारण होता है।

वर्तमान संदर्भ में "रुको और जाओ नियतिवाद" की प्रासंगिकताएं निम्नलिखित हैं:


वातावरणीय कारक:

जो क्षेत्र संसाधन-गहन उद्योगों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, वे उच्च विकास का अनुभव कर सकते हैं [जाओ चरण]; और प्रदूषण और संसाधन की कमी जैसी पर्यावरणीय चिंताओं के कारण गिरावट का भी [ रुको चरण ] सामना करना पड़ता है। हम अक्सर जर्मनी, अमेरिका और चीन में उच्च प्रदूषण के कारण उद्योगों के बंद होने की खबरें सुनते हैं।


आर्थिक चक्र:

आर्थिक चक्र, जिनमें विस्तार की अवधि के बाद मंदी या ठहराव की विशेषता होती है, आज भी प्रासंगिक हैं। "रुको और जाओ नियतिवाद" की अवधारणा को यह समझने के लिए लागू किया जा सकता है कि कैसे क्षेत्र और शहर विकास की अवधि के दौरान आर्थिक उछाल का अनुभव कर सकते हैं, जिसके बाद मंदी के दौरान आर्थिक झटके लग सकते हैं। यह क्षेत्रीय आर्थिक नियोजन के लिए एक महत्वपूर्ण विचार बना हुआ है।


तकनीक संबंधी परिवर्तन:

जो क्षेत्र प्रारंभिक रूप से अपनाने वाले या उभरती प्रौद्योगिकियों के केंद्र हैं, वे अक्सर तेजी से विकास ("जाओ" चरण) का अनुभव करते हैं, जबकि अन्य इसे बनाए रखने या अनुकूलन करने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे ठहराव ("रोकें" चरण) होता है। आर्थिक विकास रणनीतियों के लिए इस गतिशीलता को समझना महत्वपूर्ण है।


वैश्वीकरण:

वैश्वीकरण के मामले में "रुको और जाओ नियतिवाद" बहुत प्रासंगिक है। पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश वैश्वीकरण [जाओ चरण] से लाभान्वित हो रहे थे, और अब उन्हें वही लाभ नहीं मिल रहा है [रुको चरण]।


शहरीकरण और प्रवासन:

दुनिया भर में लोगों का ग्रामीण से शहरी इलाकों की ओर आना-जाना जारी है। यह समझना कि शहरी केंद्र विकास और ठहराव चक्रों से कैसे गुजरते हैं, शहरी नियोजन, बुनियादी ढांचे के विकास और संसाधन आवंटन को सूचित कर सकते हैं।


नवाचार और उद्यमिता: 

आज, नवाचार और उद्यमिता आर्थिक विकास के प्रमुख चालक हैं। जो क्षेत्र नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देते हैं वे निरंतर विकास का अनुभव कर सकते हैं, जबकि अन्य क्षेत्र आर्थिक गति पैदा करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं।


संक्षेप में, "रुको और जाओ नियतिवाद" आज के संदर्भ में प्रासंगिक बना हुआ है, खासकर क्षेत्रीय आर्थिक विकास का विश्लेषण करते समय।


प्रश्न 

नव नियतिवाद की आलोचनाएँ क्या हैं?

उत्तर 

भूगोल में नव-नियतिवाद को, अपने पूर्ववर्ती पर्यावरणीय नियतिवाद की तरह, अपने सरलीकृत और नियतिवादी विचारों के लिए महत्वपूर्ण आलोचना का सामना करना पड़ा है।

यहाँ भूगोल में नव-नियतिवाद की कुछ प्रमुख आलोचनाएँ दी गई हैं:


पर्यावरणीय कारकों पर अधिक जोर:

नव-नियतिवाद अभी भी मानव व्यवहार और सामाजिक विकास के प्राथमिक चालकों के रूप में जलवायु, स्थलाकृति और संसाधनों जैसे भौतिक पर्यावरणीय कारकों पर भारी जोर देता है।

इसकी भी आलोचना की गई कि नव-नियतिवाद मानव पर्यावरणीय संबंधों को आकार देने में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों की जटिल परस्पर क्रिया को नजरअंदाज करता है।


मानव एजेंसी की उपेक्षा:

नव-नियतिवाद पर्यावरणीय चुनौतियों [जैसे प्रदूषण और संसाधनों की कमी] का जवाब देने में मानव प्रौद्योगिकी और नवाचार की भूमिका की उपेक्षा करता है।

यह व्यक्तियों और समाजों की अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अपने वातावरण को अनुकूलित करने, विकल्प चुनने और संशोधित करने की क्षमता को ध्यान में रखने में विफल रहता है।


क्षेत्रीय विविधता को समझाने में विफलता:

नव-नियतिवाद समान पर्यावरणीय सेटिंग्स के भीतर समाजों और संस्कृतियों की विविधता को समझाने में विफल रहा। इसमें इस बात का कोई हिसाब नहीं है कि समान पर्यावरणीय परिस्थितियों का सामना करने वाले लोगों के विभिन्न समूहों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिणाम बहुत भिन्न क्यों हो सकते हैं।



भविष्यवाणियों में अशुद्धि:

नव-नियतिवाद की नियतिवादी प्रकृति के कारण अक्सर क्षेत्रों के भविष्य के विकास के बारे में गलत भविष्यवाणियाँ होती थीं। यह अनुमान लगाने में विफल रहा कि तकनीकी प्रगति, नीति परिवर्तन या आर्थिक फोकस में बदलाव के माध्यम से क्षेत्र पर्यावरणीय बाधाओं को कैसे दूर कर सकते हैं।


इन आलोचनाओं के परिणामस्वरूप, भूगोल के क्षेत्र में नव-नियतिवाद काफी हद तक अप्रचलित हो गया है। आधुनिक भूगोल अधिक समग्र, अंतःविषय और सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाता है जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक ताकतों के गतिशील परस्पर क्रिया सहित भौगोलिक घटनाओं को प्रभावित करने वाले कारकों की एक विस्तृत श्रृंखला पर विचार करता है।


प्रश्न 

नव नियतिवाद पर संक्षिप्त नोट्स लिखें।

उत्तर 

नव-नियतिवाद एक शब्द है जिसका उपयोग भूगोल में पर्यावरणीय नियतिवाद के संशोधित रूप का वर्णन करने के लिए किया जाता है, एक सिद्धांत जो बताता है कि भौतिक पर्यावरण सीधे मानव व्यवहार और सामाजिक विकास को निर्धारित करता है।

नव-नियतिवाद कुछ संशोधनों और जटिलताओं को स्वीकार करते हुए नियतिवाद के कुछ तत्वों को शामिल करता है।

विकास और संस्कृति में क्षेत्रीय विविधताओं को समझाने के लिए भूगोल में नव-नियतिवाद का उपयोग किया गया है। यह समझने में मदद कर सकता है कि पर्यावरण, तकनीकी और सामाजिक कारकों को ध्यान में रखते हुए, कुछ क्षेत्र आर्थिक रूप से क्यों फलते-फूलते हैं जबकि अन्य संघर्ष करते हैं।


नव-नियतिवाद पर निम्नलिखित संक्षिप्त नोट्स हैं:


संशोधित नियतिवाद:

नव-नियतिवाद पर्यावरणीय नियतिवाद के चरम नियतिवाद की प्रतिक्रिया के रूप में उभरा। यह भौतिक पर्यावरण के प्रभाव को स्वीकार करने और मानव गतिविधियों और समाजों को आकार देने में अन्य कारकों की भूमिका को पहचानने के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है।

यह पर्यावरण निर्धारणवाद और संभावनावाद के बीच मध्य मार्ग प्रदान करता है।


पर्यावरण की भूमिका:

नव-नियतिवाद अभी भी मानव व्यवहार और सांस्कृतिक विकास को प्रभावित करने में भौतिक पर्यावरण को एक महत्वपूर्ण कारक मानता है। जलवायु, स्थलाकृति और संसाधन उपलब्धता जैसे कारकों को ध्यान में रखा जाता है।


तकनीकी संशोधन:

नव-नियतिवाद का एक प्रमुख पहलू यह विचार है कि प्रौद्योगिकी मानव समाज पर पर्यावरण के प्रभावों को संशोधित या मध्यस्थता कर सकती है। दूसरे शब्दों में, प्रौद्योगिकी में प्रगति समाज को चुनौतीपूर्ण वातावरण के अनुकूल बनने में मदद कर सकती है।


आर्थिक और सामाजिक कारक:

नव-नियतिवाद स्वीकार करता है कि व्यापार नेटवर्क, जनसंख्या और सरकारी नीतियों जैसे आर्थिक और सामाजिक कारक भी मानवीय गतिविधियों और विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ:

सख्त पर्यावरणीय नियतिवाद के विपरीत, नव-नियतिवाद मानव व्यवहार को प्रभावित करने में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों के महत्व को पहचानता है। यह समझता है कि विभिन्न संस्कृतियाँ समान पर्यावरणीय परिस्थितियों पर अलग-अलग प्रतिक्रिया दे सकती हैं।


आलोचना:

नव-नियतिवाद को, पर्यावरणीय नियतिवाद की तरह, मानव समाज को प्रभावित करने वाले कारकों की जटिल परस्पर क्रिया को अधिक सरल बनाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है।

नव-नियतिवाद अभी भी मानव नवाचार, प्रौद्योगिकी और पसंद की भूमिका की उपेक्षा करता है।


संक्षेप में, नव-नियतिवाद पर्यावरण नियतिवाद और संभावनावाद की तुलना में पर्यावरण और मानव समाज के बीच संबंधों को समझने के लिए एक अधिक मध्यम मार्ग दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। यह यह स्वीकार करते हुए पर्यावरण के महत्व को स्वीकार करता है कि मानव समाज कई परस्पर क्रिया करने वाले कारकों से आकार लेता है।


नव नियतिवाद पर निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों [ MCQ] के उत्तर दें:


1. नव नियतिवाद को अन्य किस नाम से भी जाना जाता है?

क) जाओ और आगे बढ़ो नियतिवाद

ख) रुको और देखो नियतिवाद

ग) रुको और जाओ नियतिवाद

घ) पर्यावरणीय नियतिवाद



उत्तर। ग) रुको और जाओ नियतिवाद


2. निम्नलिखित में से कौन सा भौगोलिक परिप्रेक्ष्य पर्यावरणीय नियतिवाद और संभावनावाद के दो विचारों के बीच एक मध्य मार्ग को दर्शाता है?

क) पर्यावरणीय नियतिवाद

ख) रुको और जाओ नियतिवाद

ग) मात्रात्मक क्रांति

घ) भूगोल में नारीवाद



उत्तर। ख ) रुको और जाओ नियतिवाद


3. भूगोल में नव नियतिवाद की शुरुआत किसने की?

क) कार्ल रिटर

ख) रिचर्ड हार्टशोर्न

ग) ग्रिफ़िथ टेलर

घ) जे एल बेरी



उत्तर। ग ) ग्रिफ़िथ टेलर


4. निम्नलिखित में से किस भौगोलिक विचार का मानना था कि पर्यावरण यातायात के नियंत्रक के रूप में कार्य करता है और प्रकृति पूर्णतः तानाशाह नहीं है?

क) पर्यावरणीय नियतिवाद

ख ) नव नियतिवाद

ग) संभावनावाद

घ) मात्रात्मक क्रांति



उत्तर। ख ) नव नियतिवाद


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