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भू संतुलन की संकल्पना की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए। | UPPSC 2021 geography optional

 प्रश्न। 

भू संतुलन की संकल्पना की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए। (15 marks) (UPPSC 2021)

भू संतुलन क्या है ? इस संदर्भ में येयरी एवं प्राट के विचारों का वर्णन कीजिए।

समस्थिति क्या है? इस संदर्भ में एयरी तथा प्रैट के मतों की विवेचना कीजिए। ( UPPSC 2012)

समस्थिति की संकल्पना की व्याख्या कीजिए। ( UPPSC 2007)

‘पृथ्वी के धरातल पर समस्थितिक दशा से क्या अभिप्राय है? इस संदर्भ में एयरी और प्रेट के मतों की व्याख्या कीजिए। (UPPSC 2005)

समस्थिति से क्या तात्पर्य है? प्राट और एयरी के विचारों की व्याख्या कीजिए। ( UPPSC 2003)

भू-संतुलन व्यवस्था से सम्बन्धित विभिन्न संकल्पनाओं का उल्लेख कीजिये और एयरी तथा प्राट के सिद्धांतों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। ( UPPSC 1997)

भूदृसन्तुलन की संकल्पना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। ( UPPSC 1995)

उत्तर। 

जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी की चार प्रमुख परतें हैं- क्रस्ट, ऊपरी मेंटल या एस्थेनोस्फीयर, निचला मेंटल और क्रोड। हम यह भी जानते हैं क्रस्ट ( भू पर्पटी ) के अलावा अन्य परत के मोटाई लगभग सारे जगह समान होती हैं।  क्रस्ट की मोटाई पर्वतो क्षेत्र में ज्यादा होती है तथा महासागरीय पर्पटी पर सबसे काम होती है। हम यह भी जानते है कि पृथ्वी की पपड़ी (सियाल) एस्थेनोस्फीयर पर तैर रही है जो कि अर्ध-तरल रूप में है और क्रस्ट की तुलना में सघन सामग्री से बनी है। इसके लिए दो बल काम करते हैं जो अर्ध-तरल एस्थेनोस्फीयर पर क्रस्ट को तैरते रहने के लिए काम करते हैं-उत्प्लावन बल और गुरुत्वाकर्षण बल।

  • उत्प्लावन बल वह ऊर्ध्वगामी बल है जो द्रवों पर वस्तुओं को तैरता रहता है।
  • गुरुत्वाकर्षण बल नीचे की ओर का बल है जो चीजों को तरल पदार्थ पर डुबो देता है।

बड़ा प्रश्न  यह है कि क्रस्ट जो कही पे बहुत ऊंची  है ( हिमालय क्षेत्र में) और कही में बहुत ही ज्यादा गर्त है (मरियाना गर्त ) अपने आप को कैसे संतुलित करती है। इसी भू संतुलन को समझाने के लिए "आइसोस्टैसी की अवधारणा" या "भू संतुलन की संकल्पना" आया। 

भू संतुलन की संकल्पना  तथा आइसोस्टैसी शब्द का प्रयोग सबसे पहले अमेरिकी भूविज्ञानी डटन ने किया था। भू संतुलन का शाब्दिक अर्थ "भूमि का संतुलन " है। यह पृथ्वी की पपड़ी (मैदानों, पठारों, पहाड़ों, आदि जैसे ऊपर के हिस्सों और समुद्र तल जैसे निचले हिस्से) और घूमती हुई पृथ्वी पर मेंटल के बीच यांत्रिक स्थिरता  की अवधारणा को बताता है।

आइसोस्टैसी की अवधारणा पृथ्वी की पपड़ी के संतुलन को प्राप्त करने की प्रवृत्ति की व्याख्या करती है जो उत्प्लावन और गुरुत्वाकर्षण बल के बीच संतुलन बनाती है।

दो प्रमुख सिद्धांत हैं जो भू संतुलन की अवधारणा की व्याख्या करते हैं:

  • भू संतुलन पर एयरी के विचार।
  • भू संतुलन पर प्राट के विचार।

भू संतुलन पर एयरी के विचार-

एयरी ने मेंटल पर क्रस्ट के संतुलन को समझाने के लिए हिमशैल और लकड़ी के टुकड़े का इस्तेमाल किया। जैसा की बड़ी आकार  की लकड़ी को पानी में डालते है तो वह छोटी आकार के लकड़ी की तुलना में ज्यादा भाग पानी में डूबता हैं। उसी प्रकार, महाद्वीपीय क्रस्ट का वह भाग तो ऊचे  है ( जैसा की हिमालय) उसके जड़ भी काभी गहरी होती है तब जाके संतुलन बनता हैं। 

निम्नलिखित छवि एयरी द्वारा प्रतिवादित भू संतुलन की अवधारणा की व्याख्या करती है -

भू संतुलन पर एयरी के विचार

भू संतुलन पर प्राट के विचार:

एयरी की इस अवधारणा की एक बड़ी खामी थी कि भू संतुलन के लिए हिमालय की बहुत लंबी होगी ( around 80 to 100 km) जो  संभव नहीं है, क्योंकि इतनी गहराई के नीचे सामग्री अर्ध-तरल रूप में हो जाएगी । ऐसी कमियों को दूर करने के लिए प्राट ने भू-संतुलन पर अपने विचार रखे।

प्राट के अनुसार, पहाड़ों, पठारों, मैदानों और समुद्री क्रस्ट का घनत्व एक समान नहीं है। पठार, मैदान और समुद्री क्रस्ट की तुलना में पर्वत हल्के पदार्थों से बने होते हैं। इसलिए सभी जगह क्रस्ट की जड़े (क्षतिपूर्ति की रेखा) समान होती है , क्रस्ट के घनत्व सब ज़गह एक समान नहीं होता।

निम्नलिखित आरेख प्राट द्वारा भू संतुलन की अवधारणा की व्याख्या करता हैं ।

भू संतुलन पर प्राट के विचार

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