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भारत में जल प्रदूषण की प्रकृति का वर्णन कीजिए।

 प्रश्न। 

 भारत में जल प्रदूषण की प्रकृति का वर्णन कीजिए।

( NCERT class 12, अध्याय 12:  भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएं  , भारत लोग और अर्थव्यवस्था)

उत्तर। 

जब पानी में अवांछित पदार्थों की सांद्रता बढ़ जाती है तो यह पानी को उपयोग के लिए अनुपयुक्त बना देता है, इसे जल प्रदूषण कहते हैं।

वह पदार्थ जो जल को प्रदूषित करता है, जल प्रदूषक कहलाता है। कुछ महत्वपूर्ण जल प्रदूषक संदिग्ध कण (रेत और सीसा जैसे भारी कण), सूक्ष्म जीवाणु (बैक्टीरिया, रोगाणु और सूक्ष्म जीव), और अकार्बनिक पदार्थ (कृषि रसायन, डिटर्जेंट, यूरेनियम, नाइट्रेट, कीटनाशक, आदि) हैं। ऐसे में पानी की आत्म शोधन क्षमता पानी को शुद्ध नहीं कर पाती है।

प्रमुख जल-प्रदूषणकारी उद्योग उर्वरक, चमड़ा, लुगदी, कागज, कपड़ा और रासायनिक उद्योग हैं।

भारत में जल प्रदूषण की प्रकृति:

भारत में नदियों, झीलों और नहरों में उपलब्ध सभी सतही जल अशुद्ध हैं। इसमें सूक्ष्म जीव प्रदूषकों (सीवेज से) और रासायनिक प्रदूषकों (कृषि अपवाह और औद्योगिक कचरे से) की उच्च सांद्रता है।

कानपुर से नीचे की गंगा का बहाव बहुत ही प्रदूषित है इसका मुख्य कारण कानपुर, प्रयाग राज, वाराणसी, पटना और कोलकाता जैसे बड़े शहरों से उत्पन्न औद्योगिक, घरेलू और शहरी अपशिष्ट हैं ।

यमुना नदी का दिल्ली से नीचे का पूरा बहाव प्रदूषित है इसका मुख्य कारण सिंचाई के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश द्वारा पानी की निकासी के कारण प्रदूषित है (क्योंकि यह चैनल में पानी को कम करती है); इसके आलावा हरियाणा और उत्तर प्रदेश से निकलने वाले कृषि अपशिष्ट और  दिल्ली, आगरा, आदि जैसे बडे शहर से निकलने वाले औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू अपशिष्ट हैं।  

रासायनिक प्रदूषक जैसे आर्सेनिक, यूरेनियम, उर्वरक, कीटनाशक आदि भी भूजल तक पहुँचने से भूजल को उपयोग के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं।

भारत में सतही जल और भूजल के प्रदूषण से उपयोग योग्य पानी की कमी हो गयी है जिससे अधिकांश शहरों में जल संकट पैदा हो गया है।

विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ जैसे धार्मिक मेले और पर्यटन भी भारत में सतही जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।

भारत में जल प्रदूषण से जलजनित रोग जैसे दस्त, आंतों के कीड़े, हेपेटाइटिस आदि होते हैं।

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