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राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जाता हैं ? व्याख्या कीजिए।

प्रश्न।  

राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जाता हैं ? व्याख्या कीजिए।

( अध्याय - 3- जल संसाधन, कक्षा  X NCERT समकालीन भारत-2 )

उत्तर।

जैसा कि हम जानते हैं कि बहुउद्देश्यीय नदी परियोजना के कई सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान हैं, इसलिए "वर्षा जल संग्रहण" बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं का विकल्प है।


वर्षा जल संग्रहण एक ऐसा सरल तकनीक जय जिसमे वर्षा जल को बहने से रोक कर उसे इकट्ठा करके भविष्य के उपयोग के लिए संग्रहीत करते हैं।

राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्र में पूर्वी राजस्थान शामिल है जो अरावली पहाड़ियों के पूर्व की ओर स्थित है।

राजस्थान के शुष्क क्षेत्र में पश्चिमी राजस्थान शामिल है जो अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी किनारे पर स्थित है।

राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में छत वर्षा जल संग्रहण आम बात थी। राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में, विशेष रूप से बीकानेर, फलोदी और बाड़मेर में, लगभग सभी पारंपरिक घरों में पीने के जल के भंडारण के लिए भूमिगत टैंक (या टाँका ) होते हैं जो छत से पाइप के माध्यम से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, फलोदी के एक घर में एक टाँका था जो 6.1 मीटर गहरा, 4.27 मीटर लंबा और 2.44 मीटर चौड़ा था।

rainwater harvesting in semi-arid regions of Rajasthan

टाँका एक अच्छी तरह से विकसित वर्षा संग्रहण प्रणाली का हिस्सा है और यह पाइप के माध्यम से घरों की ढलान वाली छत से जुड़े होते है।

छत पर गिरने वाली बारिश पाइप से टाँका में नीचे चली जाती है और इन भूमिगत "टाँका" में जमा हो जाएगी।

पहली बारिश को आमतौर पर इकट्ठा नहीं करते है क्योंकि इनका उपयोग छतों और पाइपों को साफ करने के लिए किया जाता है।

टाँका में संग्रहित वर्षा जल पीने के पानी का एक अत्यंत विश्वसनीय स्रोत है और इसका उपयोग तब किया जाता है जब अन्य सभी स्रोत सूख जाते हैं, खासकर गर्मियों में।

वर्षा जल को पलार पानी भी कहा जाता है क्योंकि इसे प्राकृतिक स्रोत का सबसे शुद्ध रूप माना जाता है।

गर्मी की मौसम में गर्मी को मात देने के लिए टाँका से सटे भूमिगत कमरे बनाए जाते थे।

आज पश्चिमी राजस्थान में टाँका प्रणाली बारहमासी इंदिरा गांधी नहर के कारण घट रही है। हालांकि, कुछ घरों में अभी भी टाँका को अपने घरों में रखते हैं क्योंकि उन्हें नहर के पानी का स्वाद पसंद नहीं है।


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