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वैदिक समाज और धर्म की मुख्य विशेषताएं क्या है? क्या आप सोचते हैं कि उनमें से कुछ विशेषताएं भारत समाज में अभी भी प्रचलित है ? | UPSC 2023 General Studies Paper 1 Mains PYQ

प्रश्न। 

वैदिक समाज और धर्म की मुख्य विशेषताएं क्या है? क्या आप सोचते हैं कि उनमें से कुछ विशेषताएं भारत समाज में अभी भी प्रचलित है ? 

(UPSC 2023 General Studies Paper 1 (Main) Exam, Answer in 150 words)

उत्तर। 

प्राचीन भारत में वैदिक काल की अवधि लगभग 1500 ईसा पूर्व और 500 ईसा पूर्व के बीच थी। विश्व का सबसे पुराना धार्मिक ग्रन्थ, ऋग्वेद की रचना पूर्व वैदिक अवधि (1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व) में हुई थी, और बाकी तीन वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद की रचना उत्तर वैदिक काल (1000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) में हुई थी। ये चार वेद पवित्र ग्रंथ हैं जो हिंदू धर्म की नींव बनाते हैं।


इस अवधि के दौरान समाज और धर्म में कई अलग -अलग विशेषताएं थीं:


वैदिक समाज की विशेषताएं:


वर्ण व्यवस्था:

वैदिक समाज में एक पदानुक्रमित सामाजिक संरचना थी जिसे वर्ण व्यवस्था के रूप में जाना जाता था, जिसने समाज को चार मुख्य वर्णों में वर्गीकृत किया था: ब्राह्मण (पुजारी और शिक्षक), क्षत्रिय (योद्धा और शासक), वैश्य (व्यापारी और किसान), और शूद्र  (मजदूर और सेवक) ।


प्रारंभिक वैदिक काल में यह एक कठोर वर्ण व्यवस्था नहीं थी, लेकिन बाद में यह एक कठोर वर्ण व्यवस्था बन गई।


अनुष्ठानों और बलिदानों का महत्व:

धार्मिक अनुष्ठान, विशेष रूप से यज्ञों ने वैदिक समाज में एक केंद्रीय भूमिका निभाई। अनुष्ठान पुजारियों द्वारा किए गए थे और माना जाता था कि यह ब्रह्मांडीय आदेश बनाए रखता है और समुदाय और परिवार की भलाई सुनिश्चित करता है।


ब्राह्मणों की भूमिका:

ब्राह्मणों ने वैदिक समाज में पुजारियों और पवित्र ज्ञान के संरक्षक के रूप में शीर्ष स्थान प्राप्त किए। उन्होंने अनुष्ठान किए, मौखिक परंपराओं को संरक्षित किया, और धार्मिक और सामाजिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


पितृसत्तात्मक समाज:

वैदिक समाज पितृसत्तात्मक थी, और परिवार के सबसे बड़े पुरुष सदस्य का परिवार में शीर्ष स्थान होता था। वैदिक समाज में पुरुष की धार्मिक समारोहों और सामाजिक शासन में केंद्रीय भूमिका होती थी।


कृषि अर्थव्यवस्था:

वैदिक समुदाय कृषि और मवेशियों के पालन पर अत्यधिक निर्भर थे। वैदिक समाज में मवेशियों , खासकर गाय को अत्यधिक महत्व दिया गया था और कृषि समृद्धि को धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा जाता था।


सभा और समिति की अवधारणा:

प्रारंभिक वैदिक काल में राजाओं को सभा और समिति जैसी विधानसभाओं द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी। यहां तक कि समिति के पास राजा को चुनने और हटाने की शक्ति भी थी।



वैदिक धर्म की विशेषताएं:

निम्नलिखित वैदिक धर्म की मुख्य विशेषताएं थीं:


बहुदेववाद:

वैदिक धर्म बहुदेववादी था, वे प्रकृति उपासक थे। इंद्र (वर्षा और बिजली के देवता), अग्नि (अग्नि के देवता), और वरुण (पवन और ब्रह्मांडीय आदेश के देवता) पूर्व वैदिक काल में प्रमुख देवता थे। उत्तर वैदिक काल में, तीन देवता, ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रमुख देवता थे।


वेदों का अधिकार:

वेदों, ऋग्वेद, समवेदा, यजुर्वेद और अथर्ववेद को पवित्र ग्रंथ माना जाता था। वे भजन, अनुष्ठान और दार्शनिक चर्चाओं में शामिल थे, और वैदिक ज्ञान की नींव के रूप में कार्य करते थे।


धर्म की अवधारणा (नैतिक और सामाजिक कर्तव्यों):

धर्म ने जीवित धर्मी जीवन में व्यक्तियों को निर्देशित किया और अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा किया।


पुनर्जन्म का चक्र:

वैदिक काल में पुनर्जन्म और कर्म की अवधारणा (कारणों और प्रभाव का कानून) की अवधारणा शुरू हुई। यह अवधारणा इस बात पर जोर देती है कि वर्तमान जीवन में जो हम कार्य करते है उनका भुगतान इस जनम से के साथ साथ अगले जन्म में भी करना पड़ता है , और इस जन्म में पूर्वर्जन्म का भी फल मिलता है।


इनमें से कुछ विशेषताएं अभी भी भारतीय समाज में प्रचलित हैं:


सांस्कृतिक निरंतरता:

वैदिक संस्कृति के कुछ तत्व जैसे कि अनुष्ठान, त्योहार और दार्शनिक अवधारणाएं, आधुनिक भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देना जारी रखे हैं।


जाति प्रथा:

हालाँकि, वर्ण व्यवस्था में काफी बदलाव हुए है, फिरभी, यह अभी भी आधुनिक भारत में एक जाति व्यवस्था के रूप में प्रबल है।


धर्म की निरंतरता:

धर्म की अवधारणा जीवन के विभिन्न पहलुओं में नैतिक और नैतिक आचरण का मार्गदर्शन करती है। कर्म पर दार्शनिक चर्चा और मोक्ष की खोज अभी भी प्रासंगिक है।



ब्राह्मण की भूमिका:

धार्मिक समारोहों में ब्राह्मणों की भूमिका और पवित्र ज्ञान को संरक्षित करना आधुनिक भारतीय समाज में जारी है।


सभा और समिति की भूमिका:

वैदिक समाज की सभा और सामूहिक की अवधारणा अभी भी आधुनिक भारतीय समाज में पंचायती राज संस्थान के रूप में प्रचलित है।


सारांश में, आधुनिक भारतीय समाज ने काफी सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विकास देखा है लेकिन वैदिक समाज और धर्म की विरासत अभी भी विभिन्न पहलुओं में भारतीय समाज में प्रचलित है। यह भारतीय सभ्यता की गतिशील प्रकृति परंपरा और अनुकूलन के बीच एक निरंतर कार्य को दर्शाती है।

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