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समुद्र-स्तर में परिवर्तन लाने वाले कारक

प्रश्न : 

उपयुक्त उदाहरणों सहित समुद्र-स्तर में परिवर्तन लाने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।

(UPSC 2024: भूगोल वैकल्पिक (समुद्र विज्ञान); NCERT: कक्षा XI (भूगोल) अध्याय-12)

उत्तर। 

समुद्र-स्तर में परिवर्तन भूतल के पारिस्थितिक, भू-आकृतिक एवं जलवायु से जुड़े जटिल कारणों के कारण होता है। यह परिवर्तन अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक दोनों प्रकार का हो सकता है। आधुनिक युग में यह विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण चर्चा में है।

 समुद्र-स्तर में परिवर्तन के प्रमुख कारक:

1. जलवायु परिवर्तन (Climate Change):

कारण: वैश्विक तापवृद्धि के कारण हिमनदों व ध्रुवीय बर्फ की पिघलन।

उदाहरण: ग्रीनलैंड व अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल रही है जिससे समुद्र स्तर बढ़ रहा है।


2. थर्मल एक्सपेंशन (Thermal Expansion of Seawater):

कारण: समुद्र का जल गर्म होने पर फैलता है।

उदाहरण: IPCC के अनुसार, वर्तमान समुद्र-स्तर वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा थर्मल एक्सपेंशन के कारण है।


3. टेक्टोनिक गतिविधियाँ (Tectonic Activities):

कारण: प्लेट विवर्तनिकी के कारण स्थल ऊँचा या नीचा हो सकता है जिससे सापेक्ष समुद्र-स्तर में परिवर्तन होता है।

उदाहरण: 2004 का हिंद महासागर भूकंप – इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में भूमि धँस गई, जिससे समुद्र-स्तर स्थानीय रूप से बढ़ गया।


4. ग्लेशियल आइस और हिमनद चक्र (Glacial and Interglacial Cycles):

कारण: हिमयुगों के दौरान समुद्र-स्तर गिरता है, जबकि अंतर्हिमयुगों में यह बढ़ता है।

उदाहरण: अंतिम हिमयुग के बाद समुद्र-स्तर लगभग 120 मीटर तक बढ़ गया।


5. मानवजनित गतिविधियाँ (Anthropogenic Causes):

कारण: भूमि दोहन, वनों की कटाई, अत्यधिक भूजल दोहन, तटीय क्षेत्रों में निर्माण।

उदाहरण: जकार्ता (इंडोनेशिया) में अत्यधिक भूजल निकासी के कारण भूमि धँसाव और समुद्र-स्तर में वृद्धि का सामना करना पड़ा।


6. स्थानीय कारक (Local Factors):

जैसे: डेल्टा क्षेत्रों में गाद जमा होना या हटना, ज्वारीय प्रभाव, समुद्री धाराओं में बदलाव।

उदाहरण: बंगाल का सुंदरवन क्षेत्र – सागर द्वीप जैसे क्षेत्रों में समुद्र-स्तर वृद्धि के कारण भूमि का क्षरण हो रहा है।


निष्कर्ष:

समुद्र-स्तर में परिवर्तन प्राकृतिक व मानवजनित दोनों कारकों का परिणाम है। इसके प्रभाव में तटीय क्षरण, द्वीपों का डूबना, जैव विविधता पर खतरा और पर्यावरणीय विस्थापन जैसी गंभीर समस्याएँ शामिल हैं। अतः इसके कारणों की समझ और प्रभावी नीति निर्माण अत्यंत आवश्यक है।

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