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अनुभूति , अभिवृति, महत्त्व एवं भावना ( पी. ए. वी. ई. ), जैव-विविधता एवं सतत पर्यावरणीय संरक्षण के महत्वपूर्ण अवयव हैं। विस्तार से समझाइए।

 प्रश्न.

अनुभूति , अभिवृति, महत्त्व एवं भावना ( पी. ए. वी. ई. ), जैव-विविधता एवं सतत पर्यावरणीय संरक्षण के महत्वपूर्ण अवयव हैं। विस्तार से समझाइए।

(UPSC 2024 भूगोल वैकल्पिक पेपर 1)

उत्तर.

पर्यावरणीय संरक्षण केवल वैज्ञानिक या नीतिगत प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह गहराई से मानवीय व्यवहार, नैतिकता एवं सांस्कृतिक चेतना से जुड़ा हुआ है। इसी संदर्भ में, PAVE ढाँचा — अनुभूति (Perception), अभिवृति (Attitude), महत्त्व (Values), और भावना (Emotion) — यह दर्शाता है कि किस प्रकार व्यक्ति व समुदाय जैव-विविधता एवं पर्यावरण से जुड़ते हैं। इस ढांचे के चारों अवयव सतत पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में मूलभूत भूमिका निभाते हैं।


1. अनुभूति (Perception):

अनुभूति से आशय है कि कोई व्यक्ति अपने अनुभव, शिक्षा, मीडिया और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर पर्यावरण को कैसे समझता है।

उदाहरण:

वैदिक परंपरा: ऋग्वेद में नदियों (सरस्वती), वनों (अरण्यानी), और पर्वतों को देवतुल्य माना गया, जिससे प्रकृति के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई।

परंपरागत कृषि: भारतीय किसान चंद्र व सौर चक्रों के अनुसार बुवाई व कटाई करते थे, जिससे प्रकृति के साथ सामंजस्य बना रहता था।

लोकतक झील (मणिपुर): स्थानीय समुदाय इसे ‘जीवनदायिनी’ मानते हैं, जिससे अति दोहन रोका गया।


2. अभिवृति (Attitude):

यह मानसिक प्रवृत्ति है, जो किसी व्यक्ति की पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रतिक्रिया को प्रभावित करती है। यह सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है।

उदाहरण:

चिपको आंदोलन (1973): उत्तराखंड की महिलाओं (जैसे गौरा देवी) ने वृक्षों को गले लगाकर उनकी कटाई रोकी — एक सशक्त सकारात्मक अभिवृति का प्रतीक।

बिश्नोई समुदाय (राजस्थान): 500 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी। खेजड़ली हत्याकांड (1730) में 363 लोगों ने पेड़ों की रक्षा हेतु बलिदान दिया।

स्वच्छ भारत अभियान: नागरिकों की स्वच्छता के प्रति मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाया।


3. महत्त्व (Values):

यह दीर्घकालिक विश्वास होते हैं, जैसे कि स्थिरता, न्याय, और पीढ़ियों के बीच संतुलन। ये सामाजिक-धार्मिक मूल्यों से गहराई से जुड़े होते हैं।

प्रकार:

परिनिष्ठ (Ecocentric): प्रकृति को स्वयं में मूल्यवान मानना।

मानवतावादी (Anthropocentric): प्रकृति को केवल मानव उपयोग का संसाधन मानना।


उदाहरण:

देवगाँव/देवरे (Sacred Groves): महाराष्ट्र, मेघालय आदि राज्यों में धार्मिक मान्यता से संरक्षित वन क्षेत्र।

जैन धर्म की अहिंसा नीति: सभी जीवों के प्रति करुणा और संरक्षण का संदेश।

गांधीजी का पर्यावरणीय चिंतन: “पृथ्वी हर मनुष्य की आवश्यकता पूरी कर सकती है, पर हर मनुष्य के लोभ को नहीं।”


4. भावना (Emotion):

यह सहानुभूति, विस्मय, अपराधबोध या क्रोध जैसी भावनाओं को दर्शाती है जो संरक्षण-प्रेरित व्यवहार उत्पन्न करती हैं।

 उदाहरण:

नर्मदा बचाओ आंदोलन: मेधा पाटकर के नेतृत्व में जनजातीय भूमि व नदियों से भावनात्मक जुड़ाव ने आंदोलन को बल दिया।

वन महोत्सव: वृक्षों के प्रति सामूहिक भावनात्मक आस्था को प्रोत्साहन देता है।

फिल्में एवं मीडिया: काल, कड़वी हवा जैसी फिल्में भावनात्मक जुड़ाव से जन-जागरूकता बढ़ाती हैं।


PAVE का भारतीय नीतियों में समावेश:

पर्यावरण शिक्षा: एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में "प्रकृति रक्षा ही धर्म है" जैसे सिद्धांतों का समावेश।

सामुदायिक भागीदारी: संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) में स्थानीय ज्ञान और भावनात्मक जुड़ाव को समाहित किया गया।

मीडिया अभियान: गंगा बचाओ, स्वच्छता मिशन आदि में जनभावना को माध्यम बनाया गया।

उज्ज्वला योजना : उज्ज्वला योजना जैसे कार्यक्रम व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित करते हैं।


निष्कर्ष:

PAVE ढांचा स्पष्ट करता है कि जैव-विविधता और पर्यावरणीय संरक्षण केवल तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक मानवीय-सांस्कृतिक प्रक्रिया भी है। भारत की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराएँ इन चारों अवयवों को सुदृढ़ करती हैं। अतः, एक समग्र, सांस्कृतिक रूप से जुड़ी और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध संरक्षण नीति ही दीर्घकालिक सतत विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

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