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शुष्क पर्यावरण के अपरदन और निक्षेपण भू-आकृतियों का वर्णन करें। | 66th BPSC geography Optional Paper Solutions

  प्रश्न। 

शुष्क पर्यावरण के अपरदन और निक्षेपण भू-आकृतियों का वर्णन करें। ( 25 Marks, 66th BPSC geography)

शुष्क प्रदेशों में स्थलाकृतियों की विशेषतायें की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये। ( UPPSC 2006)

एक शुष्क प्रदेश में स्थलाकृतियों के विकास का सकारण विवरण दीजिये। ( UPPSC 1997)

उत्तर। 


शुष्क पर्यावरण एक ऐसा वातावरण है जहाँ वाष्पीकरण वर्षा से अधिक होता है। गर्म रेगिस्तान और ठंडे रेगिस्तान शुष्क वातावरण के उदाहरण हैं। शुष्क पर्यावरण में हवा और पानी दो भू-आकृतिक एजेंट हैं। मरुस्थलीय क्षेत्रों में सीमित अवधि के लिए  मूसलाधार वर्षा होती है जिसके कारण पवन के साथ जल भी एक सक्रिय भू-आकृतिक एजेंट होता है।

शुष्क वातावरण में अपरदनात्मक भू-आकृतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • पेडीमेंट 
  • मोनाडॉक या इनसेलबर्ग
  • पदस्थली 
  • छत्रक 
  • ज़ुगेन


शुष्क वातावरण में निक्षेपी भू-आकृतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • प्लाया 
  • बालू टिब्बे 
  • अनुदैर्ध्य टीले।
  • अनुप्रस्थ टीले।

erosional and depositional landforms of the arid environment

पेडीमेंट:

पेडिमेंट निम्नलिखित विशेषताओं के साथ शुष्क क्षेत्र में सबसे प्रमुख अपरदनात्मक भू-आकृतियों में से एक है:

  • पेडीमेंट मंद ढाल वाली चट्टानी फर्श हैं।
  • पेडीमेंट पर्वतो के पाद के पास बनते हैं।
  • इस पर मलबे हो भी सकते है और ना  भी हो सकते है ।
  • पेडिमेंट का निर्माण पर्वतो के अग्र भाग में क्षैतिक अपरदन से बनते है जो प्रायः  सरिता धाराओं एवं बाढ़ से बनते हैं।


मोनाडॉक या इनसेलबर्ग:

  • जैसा कि हम जानते हैं कि पहाड़ की तलहटी में पेडिमेंट बनते हैं। समय के साथ, पृष्टक्षरण( बैकवाशिंग )के कारण से ढलानों में समानांतर निवर्तन (पीछे हटना ) होता है। 
  • पेडिमेंट के पीछे हटने  से पर्वतीय केअग्र भाग भी समानांतर रूप से पीछे हटता है। धीरे-धीरे, पहाड़ की शेष राशियाँ बच जाती है तो कठोर चट्टानों की होती है उसे मोनाडॉक या इनसेलबर्ग कहा जाता है।


पदस्थली (पेडिप्लेन्स) :

  • समय के साथ, पेडिमेंट और इंसेलर्ग जैसी उच्चावच वाली भू-आकृतिया  अपरदन हो कर एक आकृति विहीन मैदान में बदल जाती है उसे पदस्थली (पेडिप्लेन्स) कहते  हैं। पेडिप्लेन शुष्क वातावरण में अपरदनकारी भू-आकृतियाँ हैं।


छत्रक (मशरूम चट्टानें):

  • जब हवाएँ चट्टानों के ऊपरी भाग की तुलना में चट्टानों के निचले हिस्से का अधिक क्षरण करती हैं, तो चट्टान एक संकीर्ण आधार और चौड़े शीर्ष के साथ मशरूम जैसी दिखती है, इसे मशरूम स्थलाकृति या छत्रक कहा जाता है।


ज़ुगेन:

  • जब चट्टान अपरदन होंगे टेबल आकृति के बच जाती है उसे जुगेन भू-आकृति कहते है। 


प्लाया:

प्लाया शुष्क वातावरण में निक्षेपी भू-आकृतियाँ हैं। प्लाया निम्नलिखित तरीकों से बनते हैं:

  • जब रेगिस्तानी क्षेत्र में मूसलाधार बारिश होती है, तो पहाड़ों और पहाड़ियों से तलछट( अवसाद) घाटियों के केंद्र में जमा हो जाती है।
  • और एक लगभग समतल मैदानों का निर्माण होता है, इसे प्लाया कहा जाता है।
  • जब अल्प अवधि के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध होता है, तो मैदान एक उथले जल निकाय से आच्छादित हो जाता है।
  • प्लाया में लवणों का अच्छा निक्षेपण भी होता है।


लेयस 

  • गर्म मरुस्थलीय क्षेत्रों में, जहाँ पर्याप्त बालू उपलब्ध होता हैं, हवाएँ रेत का परिवहन करती हैं और बड़े क्षेत्रों में अनियंत्रित तरीके से जमा कर देते  हैं, इसे लेयस कहा जाता है।


बालू टिब्बे:

जहां पर्याप्त मात्रा में बालू उपलब्ध होता है वहां बालू के टीले बनते हैं।

रेत के टीले कई प्रकार के होते हैं:

अर्धचंद्राकार टीले:

अर्धचंद्राकार टीले, जिन्हें बरखान भी कहा जाता है, यह रेतीले रेगिस्तान में प्रचुर सख्या में पाये जाते हैं। अर्धचंद्राकार टीले का आकार अक्षर "सी" जैसा होता है। अर्धचंद्राकार टीले की भुजाये पवनो के बहने के दिशा में निकते हैं। 

अनुदैर्ध्य टिब्बे:

  • जब हवा की दिशा स्थाई होती है और रेत की आपूर्ति में कमी होती है, तो अनुदैर्ध्य टीले बनते हैं। अनुदैर्ध्य टीले आमतौर पर बड़ी लंबाई के होते है लेकिन ऊंचाई में कम होते हैं।

अनुप्रस्थ टिब्बे :

  • अनुप्रस्थ टिब्बे हवा की दिशा के लंबवत बनते हैं। यह तब बनता है जब हवा की दिशा स्थिर होती है और इसमें रेत का पर्याप्त स्रोत होता है। यह कम ऊंचाई के होते है लंबाई ज्यादा होते है। 


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