आर्यभट्ट का परिचय:
जन्म: 476 ईस्वी (अंदाजन पाटलीपुत्र, बिहार में)
काल: गुप्तकालीन भारत के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री एवं गणितज्ञ
प्रमुख ग्रंथ: आर्यभटीय
योगदान क्षेत्र: गणित, खगोलशास्त्र, भूगोल
आर्यभट्ट का भूगोल में योगदान:
1. पृथ्वी का आकार:
आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी एक गोलाकार (गोल) पिंड है। पृथ्वी अंतरिक्ष में स्थित है , जो जल, पृथ्वी , अग्नि , और वायु से बनी है। यह सभी स्थलीय और जलीय प्राणियों से घिरी हुई है।
2. पृथ्वी का घूर्णन:
उन्होंने सिद्ध किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, जिससे दिन-रात होते हैं।
3. अक्षांश-देशांतर की समझ:
समय के अन्तर को देशांतर के आधार पर समझाया।
4. ग्रहण का वैज्ञानिक कारण:
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के पीछे पृथ्वी व चंद्रमा की छाया का कारण बताया।
5. पृथ्वी की परिधि:
उन्होंने पृथ्वी की परिधि करीब 40,000 किलोमीटर अनुमानित की, जो आधुनिक मापन के बहुत निकट है।
महत्त्व:
आर्यभट्ट के सिद्धांतों ने भूगोल और खगोलशास्त्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाकर भविष्य के विद्वानों के लिए राह आसान की।
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