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पर्वतीय क्षेत्र पारिस्थितिकी परिवर्तनों के प्रति अधिक भंगुर है।

 प्रश्न। 

पर्वतीय क्षेत्र पारिस्थितिकी परिवर्तनों के प्रति अधिक भंगुर है। स्पष्ट कीजिए। 

( UPSC 2024 भूगोल पेपर 1; 

Syllabus: पर्यावरण भूगोल; 

NCERT: कक्षा XI भूगोल-अध्याय-6 )

 उत्तर:


पर्वतीय क्षेत्र भौगोलिक रूप से विविध, जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील और पारिस्थितिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन इन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी अत्यधिक नाजुक (fragile) होती है, जिस पर प्राकृतिक व मानवीय गतिविधियों का तीव्र प्रभाव पड़ता है।


पर्वतीय पारिस्थितिकी की भंगुरता के कारण:

1. ढालदार भू-आकृति (Steep Slopes):

अत्यधिक ढाल पर स्थित होने के कारण मिट्टी का अपरदन और भूस्खलन सामान्य हैं।

जल धारण क्षमता कम होती है, जिससे जल बहाव तेज होता है।


2. मृदा अपरदन एवं भूस्खलन:

वनों की कटाई और अवैज्ञानिक कृषि विधियों के कारण मृदा क्षरण बढ़ता है।

भूस्खलन से मानव जीवन, आधारभूत संरचनाएं और पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होते हैं।


3. वनों की कटाई और जैव विविधता में गिरावट:

वनों की कटाई से जैव विविधता का ह्रास होता है और वन्यजीवों का आवास नष्ट होता है।

उदाहरण: हिमालय क्षेत्र में रेशमी ओक, रोडोडेंड्रॉन आदि की प्रजातियाँ संकट में हैं।


4. जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता:

हिमनदों का पिघलना (जैसे गंगोत्री ग्लेशियर), तापमान वृद्धि और अनियमित वर्षा पर्वतीय पारिस्थितिकी को सीधे प्रभावित करती है।


5. पर्यटन और शहरीकरण का दबाव:

अवसंरचनात्मक विकास और पर्यटन के अनियंत्रित विस्तार से प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।

उदाहरण: मनाली, मसूरी जैसे पर्वतीय नगरों में जल संकट और अपशिष्ट प्रबंधन की समस्याएँ।


6. भू-संरचनात्मक संवेदनशीलता:

पर्वतीय क्षेत्र भूकंप, भूस्खलन और भूकंपीय गतिविधियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं।


उदाहरण:

हिमालय: हिमनदों का पीछे हटना, अचानक बाढ़, भूकंपीय संवेदनशीलता

पश्चिमी घाट: एकल फसल वृक्षारोपण (मोनोकल्चर) और खनन के कारण आवास हानि

उत्तर-पूर्व भारत: झूम खेती और वनों की कटाई के कारण भूस्खलन


निष्कर्ष:

पर्वतीय क्षेत्र न केवल प्राकृतिक संसाधनों के भंडार हैं, बल्कि जैव विविधता और जलवायु विनियमन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक भंगुरता को ध्यान में रखते हुए सतत विकास, सामुदायिक भागीदारी और वैज्ञानिक प्रबंधन आवश्यक है।

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