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सुकरात के दार्शनिक विचार | UPSC GS IV (नैतिकता)

सुकरात के बारे में (469–399 ई.पू.):

सुकरात प्लेटो के गुरु और "पाश्चात्य दर्शन के जनक" माने जाते हैं।

उन्होंने कोई लेखन कार्य नहीं किया; उनके विचार प्लेटो और ज़ेनोफ़न की रचनाओं के माध्यम से ज्ञात हैं।

उन्होंने सादा, सिद्धांतों पर आधारित जीवन जिया।

एथेंस के युवाओं को "भ्रष्ट" करने और ईश्वर निंदा के आरोप में उन्हें विष (हेमलॉक) पीने की सजा दी गई।


सुकरात की प्रमुख नैतिक शिक्षाएँ:


1. जीवन में नैतिकता का महत्व:

सुकरात मानते थे कि "एक अनुपरीक्षित (Unexamined) जीवन जीने योग्य नहीं है।"

सुकरात मानते थे कि नैतिक विचार-विमर्श (moral inquiry) मनुष्य का सबसे आवश्यक कार्य है।

नैतिकता बाहरी नियमों का पालन नहीं, बल्कि आत्ममंथन और विवेकपूर्ण सोच है।


2. सुकरात पद्धति (Socratic Method):

सुकरात,  हर कार्य में प्रश्न पूछने और तर्क को प्रोत्साहित करते थे। 

तर्क आत्म-चेतना और नैतिक स्पष्टता को बढ़ावा देती है — प्रशासनिक सेवाओं में निर्णय लेने के लिए उपयोगी।


3. गुण (Virtue) ही ज्ञान है:

सुकरात के अनुसार, सभी नैतिक गुण जैसे न्याय, साहस, और बुद्धिमत्ता — ज्ञान के रूप हैं।

कोई भी व्यक्ति जानबूझकर गलत कार्य नहीं करता; गलतियाँ अज्ञानता से होती हैं।

अच्छे कार्य करने के लिए सच्चे "भले" की समझ आवश्यक है।


4. नैतिक अखंडता और अंतरात्मा की आवाज़:

उन्होंने ज़ोर दिया कि व्यक्ति को समाज या सत्ता के दबाव के बावजूद अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का पालन करना चाहिए।

उन्होंने मृत्यु से बचने का अवसर होते हुए भी जेल से भागने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह उनके सिद्धांतों के विरुद्ध होता।


5. समाज के प्रति कर्तव्य:

सुकरात सक्रिय नागरिकता और समाज के प्रति उत्तरदायित्व में विश्वास रखते थे।

उन्होंने केवल उपदेश नहीं दिया, बल्कि नैतिकता को सार्वजनिक जीवन में जिया — जो सुशासन और प्रशासनिक नैतिकता के लिए अत्यंत आवश्यक है।


सुकरात की शिक्षाएँ:

नैतिक आत्मनिरीक्षण, नैतिक साहस, अंतरात्मा की चेतना, और सामाजिक उत्तरदायित्व को महत्व देती हैं।

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