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अध्याय 9: परिवार और समुदाय का सारांश, कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान NEW NCERT

 सारांश:

परिवार समाज की सबसे प्राचीन और मूलभूत इकाई है, जहाँ सदस्य आपसी प्रेम, सहयोग और जिम्मेदारी निभाते हैं। भारतीय परिवार संयुक्त और एकल दोनों रूपों में पाए जाते हैं तथा बच्चों को परंपराएँ, त्याग, सेवा और सहयोग जैसे मूल्य सिखाते हैं। परिवार केवल रिश्तों का समूह नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों का विद्यालय है।


समुदाय कई परिवारों और व्यक्तियों का समूह है जो त्योहार, विवाह, खेती और संसाधनों के साझा उपयोग जैसे कार्यों में मिलकर सहयोग करता है। ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में समुदाय अलग-अलग रूप में दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी मूल भावना आपसी सहयोग, जिम्मेदारी और परस्पर निर्भरता पर आधारित होती है।

इस तरह परिवार और समुदाय दोनों व्यक्ति और समाज को मजबूत बनाते हैं।


परिवार:


परिवार किसी भी समाज की मूलभूत और सबसे प्राचीन इकाई है। भारत में परिवार के कई प्रकार देखने को मिलते हैं :


संयुक्त परिवार – इसमें कई पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं, जैसे दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहन और चचेरे भाई-बहन।


एकल परिवार – इसमें केवल माता-पिता और उनकी संतान रहती है। कई बार यह केवल एक अकेले माता या पिता और उनके बच्चों तक सीमित होता है।


भारतीय भाषाओं में पारिवारिक संबंधों के लिए विशेष संबोधन मिलते हैं, जैसे हिंदी में — बुआ, ताऊ, ताई, चाचा, मौसी, नाना, नानी आदि। कुछ भाषाओं में बड़े और छोटे भाई-बहनों के लिए भी अलग-अलग शब्द हैं।


इसके विपरीत, अंग्रेज़ी भाषा में पारिवारिक संबंधों के लिए अपेक्षाकृत कम शब्द हैं। उदाहरण के लिए "Cousin" शब्द का प्रयोग किसी भी चचेरे या मौसेरे भाई-बहन के लिए किया जाता है। लेकिन भारतीय भाषाओं में "कजिन" का एक शब्द नहीं मिलता, क्योंकि यहाँ प्रत्येक रिश्ते को अलग पहचान दी जाती है।


इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय समाज में परिवारिक संबंध अधिक गहरे और घनिष्ठ माने जाते हैं।


भूमिकाएँ एवं दायित्व:

परिवार के सदस्यों के बीच संबंध प्रेम, देखभाल, सहयोग और परस्पर निर्भरता पर आधारित होते हैं।

सहयोग का अर्थ है – एक साथ काम करना।

परिवार में हर सदस्य की अन्य सदस्यों के प्रति कुछ भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ होती हैं।

माता-पिता बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाने का दायित्व निभाते हैं, जबकि बड़े होने पर बच्चे भी अपने माता-पिता और भाई-बहनों की सहायता करते हैं। परिवार बच्चों को परंपराएँ, प्रथाएँ और जीवन-मूल्य सिखाता है, जैसे अहिंसा, दान, सेवा और त्याग।


इस अध्याय में परिवार के भूमिकाएँ एवं दायित्व को समझाने के लिए दो कहानियां दी गयी है -


कहानी 1 : शालिनी (केरल से):

शालिनी का परिवार ओणम त्योहार की तैयारी कर रहा था।

उसके चाचा की नौकरी छूट गई थी, इसलिए वे नए कपड़े नहीं खरीद सकते थे।

शालिनी के माता-पिता ने अपनी ओर से सभी परिवारजनों (चाचा-चाची और चचेरी बहन) के लिए भी कपड़े खरीदे।

इस कारण शालिनी को मनचाहे रेशमी कपड़े न मिलकर साधारण कपड़े मिले।

दादी (अच्चम्मा) ने समझाया कि परिवार में सभी एक-दूसरे की मदद करते हैं और चीजें साझा करते हैं।

शालिनी को खुशी हुई कि सभी को नए कपड़े मिले, भले ही उसकी पसंद पूरी न हो पाई।


यह कहानी दर्शाती है कि परिवार त्याग, सहयोग और साझा जीवन के मूल्य सिखाता है।


कहानी 2 : तेनजिंग (मेघालय से):

तेनजिंग के पिता एक छोटी किराने की दुकान चलाते हैं और माँ हस्तशिल्प सहकारी संस्था में काम करती हैं।

इसलिए पिता घर के कामों में, बगीचे की देखभाल और खाना पकाने में भी मदद करते हैं।

दादी तेनजिंग को कहानियाँ सुनाती हैं और दादा पढ़ाई में मदद करते हैं व स्कूल बस तक ले जाते हैं।

दादा सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं, जैसे –

बिजली जाने पर शिकायत दर्ज कराना।

तूफान से प्रभावित पड़ोसी की मदद के लिए धन एकत्र करना।

परिवार में खर्चों को लेकर माता-पिता आपस में चर्चा करते हैं और भविष्य के लिए बचत पर जोर देते हैं।


यह कहानी दिखाती है कि परिवार साझा जिम्मेदारियाँ निभाता है, सहयोग करता है और समाज की भलाई के लिए भी कार्य करता है।


समुदाय:

समुदाय का अर्थ है — कई परिवारों और व्यक्तियों का एक ऐसा समूह, जो आपसी सहयोग, साझेदारी और जिम्मेदारी के भाव से जुड़ा रहता है। परिवार केवल अपने भीतर ही नहीं, बल्कि आसपास के अन्य परिवारों और लोगों से भी जुड़ा होता है। यही जुड़ाव “समुदाय” कहलाता है।


समुदाय के सदस्य अनेक कारणों से साथ आते हैं, जैसे — त्योहार मनाने, विवाह, मेले, खेती के कामों में सहयोग या प्राकृतिक संसाधनों के साझा उपयोग में। गाँवों में लोग बुवाई-कटाई, तालाब बनाने, वर्षा जल संचय या पेड़ लगाने जैसे कार्य सामूहिक रूप से करते हैं। ऐसे सामूहिक अभ्यास अक्सर बिना लिखित नियमों के चलते हैं, लेकिन ये सबको समान अवसर और संसाधनों तक सुरक्षित पहुँच प्रदान करते हैं।


भारत में अनेक उदाहरण हैं, जैसे —


भील समुदाय की हलमा परंपरा (झाबुआ, मध्यप्रदेश) जिसमें लोग पेड़ लगाकर और जल संरचनाएँ बनाकर पर्यावरण और समाज की सेवा करते हैं।


चेन्नई की बाढ़ (2015) के समय कई संगठनों ने बिना किसी लाभ की अपेक्षा के ज़रूरतमंदों को भोजन पहुँचाया।


अहमदाबाद (गुजरात) के कमल परमार ने सड़क पर रहने वाले वंचित बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और धीरे-धीरे यह एक बड़ा सामुदायिक प्रयास बन गया।


शहरी क्षेत्रों में भी समुदाय अलग रूप में मौजूद हैं, जैसे आवासीय कल्याण समितियाँ। ये समितियाँ अपशिष्ट प्रबंधन, साफ-सफाई, सामुदायिक नियम और जरूरतों को तय करती हैं। यहाँ भी लोग एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं, जैसे — किराने की आपूर्ति के लिए व्यापारी समुदाय पर और कूड़ा निस्तारण के लिए नगर निगम पर।


समुदाय एक लचीली और व्यापक संकल्पना है। यह जाति, धर्म, क्षेत्र, पेशा या साझा रुचि पर आधारित भी हो सकता है। इसकी मूल भावना है — आपसी सहयोग, साझा जिम्मेदारी और एक-दूसरे पर निर्भरता।

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