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Summary of Chapter 14 class 6 Social Science | अध्याय 14: हमारे आस-पास की आर्थिक गतिविधियाँ का सारांश | कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान NEW NCERT

इस अध्याय में हमारे आस-पास की आर्थिक क्षेत्रक और आर्थिक क्षेत्रकों में वर्गीकरण बताया गया है। 

अध्याय 14:  हमारे आस-पास की आर्थिक गतिविधियाँ का सारांश | कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान NEW NCERT


इस अध्याय पर आधारित कुछ प्रमुख शब्दावली निम्नलिखित है -


1. प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector):

प्राथमिक क्षेत्रक उन गतिविधियों के समूह है,  जिनमें प्रकृति माँ (mother nature ) से सीधे कच्चा माल प्राप्त किया जाता है।

उदाहरण: कृषि, मछली पालन, वानिकी, मुर्गी पालन, खनन , आदि ।



2. द्वितीयक क्षेत्रक (Secondary Sector):

द्वितीयक क्षेत्रक उन गतिविधियों के समूह है, जिसमे प्राथमिक क्षेत्रक से प्राप्त कच्चे माल का प्रसंस्करण कर नई वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

उदाहरण: गेहूँ से आटा बनाना, लकड़ी से फर्नीचर बनाना, कपास से कपड़े बनाना, निर्माण , विनिर्माण, जल-आपूर्ति , सौर ऊर्जा , विद्युत उत्पादन , आदि ।


3. तृतीयक क्षेत्रक (Tertiary Sector):

तृतीयक क्षेत्रक उन गतिविधियों के समूह है, जिसमे यह प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक को सहयोग देने वाली सेवाएँ प्रदान करता है।

उदाहरण: परिवहन, बैंकिंग, व्यापार प्रबंधन, संचार, स्वास्थ्य सेवा , शिक्षा , आदि ।


4. डेयरी: 

डेयरी एक ऐसा स्थान होता है जहाँ दूध को एकत्रित व भंडारण करते है। 

उदाहरण: गाँव की डेयरी से शहर में दूध पहुँचाना।


5. बिचौलिया (Middleman): 

बिचौलिया वह व्यक्ति होता है जो उत्पादक से माल खरीदकर उपभोक्ता को बेचता है, इस सेवा के लिए वह शुल्क लेता है।

उदाहरण: व्यापारी, किसान से फल खरीदकर बाजार में बेचता है तो वह बिचौलिया कहलाता है।


6. सहकारी संगठन (Cooperative Society):

व्यक्तियों का समूह जो आर्थिक व सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मिलकर निर्णय लेता है।

उदाहरण: अमूल डेयरी सहकारी समिति।


7. पाश्चुरीकरण (Pasteurization): 

पाश्चुरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे दूध को निश्चित तापमान तक गर्म करके हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट करते है।


उदाहरण: पैकेट वाले दूध में उपयोग।


8. कारखाना (Factory): 

भवनों का समूह जहाँ वस्तुओं का निर्माण या संयोजन होता है, कारखाना कहलाता है ।

उदाहरण: स्टील प्लांट, वस्त्र उद्योग।


9. खुदरा (Retail):

वस्तुओं की छोटी मात्रा अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचाना और उसे पुनः विक्री नहीं करने को खुदरा कहते है।

उदाहरण: किराने की दुकान।


10. निर्यात (Export): 

एक देश में बनी वस्तुओं/सेवाओं को दूसरे देश में बेचने को निर्यात कहते है।

उदाहरण: भारत से चाय और मसालों का निर्यात।


11.गोदाम (Warehouse): 

बड़े भवन जहाँ वस्तुएँ बेचने या उपयोग से पहले संग्रहीत की जाती हैं।

उदाहरण: अनाज गोदाम।


12. मौद्रिक मूल्य (Monetary Value): 

किसी वस्तु का मूल्य जिसे मुद्रा के मूल्य से मापा जा सके, मौद्रिक मूल्य कहलाता है।

उदाहरण: लकड़ी की कीमत ₹5000।


अध्याय 14:  हमारे आस-पास की आर्थिक गतिविधियाँ का सारांश:

पिछले अध्याय में हमने आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियों के बारे में सीखा था। इस अध्याय में आर्थिक गतिविधियों के विभिन्न प्रकार के बारे अध्ययन करेंगे। 


पहले लोग मुख्यतः कृषि, पशुपालन, बर्तन बनाने, कपड़े बुनने जैसी गतिविधियों में लगे रहते थे, लेकिन आज कंप्यूटर, मोबाइल, ड्रोन निर्माण, बैंक, विद्यालय, होटल, परिवहन, सॉफ्टवेयर निर्माण और मरम्मत जैसी अनेक आधुनिक गतिविधियाँ भी जुड़ चुकी हैं।


समाज के विकास के साथ आर्थिक गतिविधियों की संख्या भी बढ़ी है।


आर्थिक क्षेत्रक:

कुछ आर्थिक गतिविधियों में सामान विशेषताएं होती है और इसके आधार पर इनके आधार पर समूह व् व्यापक समूह में वर्गीकृत किया जा सकता है , जिन्हे आर्थिक क्षेत्रक कहते है। 


आर्थिक क्षेत्रकों में वर्गीकरण:


आर्थिक गतिविधियों को समान विशेषताओं के आधार पर तीन मुख्य क्षेत्रकों में बाँटा गया है :

  • प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector)
  • द्वितीयक क्षेत्रक (Secondary Sector)
  • तृतीयक क्षेत्रक (Tertiary Sector)



प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector):

जिन आर्थिक गतिविधियाँ में लोग प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रकृति पर  निर्भर रहते है, उनके प्राथमिक गतिविधियां या प्राथमिक क्षेत्रक के आर्थिक गतिविधियां कहते है। 

उदाहरण: कृषि, वानिकी, खनन, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन आदि।


द्वितीयक क्षेत्रक (Secondary Sector):

जिन आर्थिक गतिविधियाँ में लोग प्राथमिक क्षेत्रक पर आधारित वस्तुओं को रूपांतरित करके अन्य वस्तुओं का उत्पादन करते है,  उन्हें  द्वितीयक गतिविधियां या द्वितीयक क्षेत्रक के आर्थिक गतिविधियां कहते है। 

उदाहरण: 

  • भवनों व् सड़को का निर्माण , 
  • जल आपूर्ति , 
  • सौर ऊर्जा, विद्युत उत्पादन, 
  • चाय  पत्ती से चाय तैयार करना ,
  • अनाज से आटा बनाना।
  • मूँगफली से तेल निकालना।
  • लकड़ी से फर्नीचर और कागज बनाना।
  • कपास से कपड़े तैयार करना।
  • लौह अयस्क से इस्पात और फिर वाहनों (कार, ट्रक आदि) का निर्माण।



तृतीयक क्षेत्रक (Tertiary Sector): 

वे आर्थिक गतिविधियाँ, जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक में  लगे लोगों को सहायता प्रदान करता है ,  उन्हें  तृतीयक गतिविधियां या तृतीयक क्षेत्रक के आर्थिक गतिविधियां कहते है। 

इसमें सेवाएँ प्रदान करने वाली गतिविधियाँ शामिल हैं। 


उदाहरण: परिवहन, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।


क्षेत्रकों में परस्पर निर्भरता:

तीनों क्षेत्र आपस में एक दूसरे से परस्पर निर्भर है। इसको डेयरी सहकारिता से हम समझ सकते है -

  • प्राथमिक क्षेत्रक: दूध उत्पादन (गाय/भैंस से प्राप्त)।
  • द्वितीयक क्षेत्रक: दूध का प्रसंस्करण और नए उत्पाद (पाउडर, पनीर, मक्खन)।
  • तृतीयक क्षेत्रक: परिवहन, विपणन, खुदरा दुकानें।


डेयरी सहकारिता – खेत से थाली तक:

पहले गुजरात के किसान दूध बेचने के लिए नज़दीकी गाँवों तक पैदल या साइकिल से जाते थे।

गर्मी के कारण दूध जल्दी खराब हो जाता था।

बिचौलिये किसानों से सस्ता दूध खरीदकर बाज़ार में महँगा बेचते थे, जिससे किसानों को बहुत कम आय होती थी।

समस्या का समाधान:

किसान सरदार वल्लभभाई पटेल से मिले।

उन्होंने किसानों को बिचौलियों से बचने के लिए सहकारी संगठन बनाने की सलाह दी।

1946 में अमूल (Anand Milk Union Ltd.) की स्थापना त्रिभुवनदास पटेल और डॉ. वर्गीज़ कुरियन के नेतृत्व में हुई।


सहकारिता का प्रभाव:

किसान सामूहिक रूप से दूध का उत्पादन, पाश्चुरीकरण और बिक्री करने लगे।

महिलाओं की भागीदारी और किसानों की आय बढ़ी।

दूध की अधिकता होने पर मक्खन, दूध पाउडर, घी, पनीर जैसे अन्य उत्पाद भी बनाए जाने लगे।


विकास और विस्तार:

अमूल ने कई प्रसंस्करण संयंत्र और कारखाने स्थापित किए।

उत्पादों की बिक्री पूरे भारत और विश्व के कई देशों में होने लगी।

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