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वृक्षाकार (डेंड्रिटिक ) और जालीनुमा (ट्रेलिस ) अपवाह प्रारूप के बीच अंतर स्पष्ट करें।

 प्रश्न। 

वृक्षाकार (डेंड्रिटिक ) और जालीनुमा (ट्रेलिस ) अपवाह प्रारूप के बीच अंतर स्पष्ट करें। 

(अध्याय -3 अपवाह तंत्र , कक्षा 11 NCERT भूगोल "भारत भौतिक पर्यावरण")

उत्तर।

निश्चित वाहिकाओं (चैनल) के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को "अपवाह (ड्रेनेज) " के रूप में जाना जाता है और ऐसे वाहिकाओं के तंत्र को अपवाह तंत्र के रूप में जाना जाता है। 

अपवाह तंत्र भौगोलिक क्षेत्रों में कुछ विशिष्ट पैटर्न बनाता है जिसे अपवाह प्रतिरूप के रूप में जाना जाता है।

अपवाह प्रतिरूप के विभिन्न प्रकार हैं जो भूवैज्ञानिक समय अवधि, चट्टानों की प्रकृति और संरचना, स्थलाकृति, ढलान और क्षेत्रों में पानी के प्रवाह की मात्रा द्वारा निर्धारित होते है।


महत्वपूर्ण अपवाह प्रारूप निम्नलिखित हैं;

  • वृक्षाकार (डेंड्रिटिक ) अपवाह प्रतिरूप। 
  • जालीनुमा (ट्रेलिस ) अपवाह प्रतिरूप। 
  • अरीय  (रेडियल ) अपवाह प्रतिरूप। 
  • अभिकेंद्री अपवाह प्रतिरूप। 


वृक्षाकार (डेंड्रिटिक ) और जालीनुमा (ट्रेलिस ) अपवाह प्रारूप के बीच अंतर निम्नलिखित हैं;

differences between the Dendritic and Trellis drainage patterns

पेड़ की शाखाओं की तरह बनने वाले अपवाह प्रारूप को वृक्षाकार (डेंड्रिटिक ) अपवाह प्रारूप के रूप में जाना जाता है जबकि ऐसे अपवाह प्रारूप जिसमें सहायक नदियां एक दूसरे के समानांतर बहती हैं और द्वितीयक सहायक नदियां समकोण पर प्राथमिक सहायक नदियों से जुड़ती हैं, तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा (ट्रेलिस ) के रूप में जानी जाती हैं।

वृक्षाकार (डेंड्रिटिक ) अपवाह प्रतिरूप ज्यादातर उत्तरी मैदानों में पाए जाते हैं जबकि जालीनुमा (ट्रेलिस ) अपवाह प्रतिरूप ज्यादातर भारत के छोटा नागपुर पठार में पाए जाते हैं।

वृक्षाकार (डेंड्रिटिक ) अपवाह प्रतिरूप ज्यादातर मैदानी क्षेत्रों में बनते हैं जहा जलोढ़ मृदा का जमाव होता है जबकि जालीनुमा (ट्रेलिस ) अपवाह प्रतिरूप ज्यादातर उन क्षेत्रों में बनते हैं जहां नरम और कठोर चट्टानें वैकल्पिक रूप उपस्थित होते है और एक दूसरे के समानांतर रूप में मौजूद होती हैं।

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